
भारत में ज्यादातर पेरेंटस अपने बच्चों के लिए संपत्ति जोड़ते हैं और कई बार एक वसीयत भी बनाते हैं। ताकि, उनके जाने के बाद बाद संपत्ति के बंटवारे को लेकर झगड़ा न हो।लेकिन अगर कोई व्यक्ति वसीयत नहीं छोड़ता है, तो बच्चों के बीच प्रॉपर्टी का बराबर हिस्सा होता है। इसमें बेटा और बेटी दोनों होते हैं। कानून में पिता की संपत्ति पर बेटे और बेटी को बराबर का हक दिया है।
बेटियों का भी है बराबरी का अधिकार
2005 में हिंदू उत्तराधिकार कानून (Hindu Succession Act) में किए गए रिवीजन के अनुसार बेटियों को भी पिता की संपत्ति में बेटों के बराबर अधिकार मिला है। चाहे बेटी शादीशुदा हो या कुंवारी, उसे पिता की कमाई संपत्ति और प्रॉपर्टी में बराबर का हिस्सा मिलता है। लेकिन ये तभी है जब पिता ने वसीयत नहीं लिखी हो। अगर पिता मरने से पहले वसीयत लिखकर गए हैं तो उसके मुताबिक बच्चों को प्रॉपर्टी मिलती है।
वसीयत न हो तो क्या होगा?
अगर पिता ने वसीयत नहीं बनाई है तो उनकी संपत्ति हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम के तहत कानूनी वारिसों में बांटी जाती है। इसमें बेटा, बेटी, पत्नी को प्रॉपर्टी का बराबर हिस्सा मिलता है। ये क्लास 1 लीगल उत्तराधिकारी माने जाते हैं।
हालांकि, अगर पिता ने वसीयत बनाकर अपनी संपत्ति किसी एक को सौंप दी हो, तो उस संपत्ति में अन्य वारिस दावा नहीं कर सकते। लेकिन पैतृक संपत्ति में वसीयत का असर नहीं पड़ता। उस पर सभी कानूनी वारिसों का बराबर का अधिकार होता है।
समय रहते में बांट देना है बेहतर उपाय
अक्सर माता-पिता भविष्य के झगड़ों से बचने के लिए अपनी संपत्ति अपने रहते ही बांट देते हैं। कई माएं अपनी बेटियों को जमीन, जेवर या मकान गिफ्ट के तौर पर देती हैं, ताकि उन्हें शादी के बाद भी आर्थिक सुरक्षा मिले।
अगर किसी व्यक्ति के पास दो मकान हैं और दो बच्चे हैं, तो वह एक-एक मकान दोनों को दे सकता है। वह एक मकान में खुद रह सकता है और दूसरी संपत्तियों को वसीयत में नॉमिनी बना सकता है। ताकि, बाद में किसी को कोई शिकायत न हो।
तलाक के बाद पैदा हुए बच्चों का भी अधिकार
एक आम सवाल यह उठता है कि क्या किसी तलाकशुदा महिला के बच्चे को उसके पूर्व पति की पैतृक संपत्ति में हक मिलता है? जवाब है – हां। हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम के अनुसार, ऐसे बच्चे भी अपने पिता की पैतृक संपत्ति में वारिस होते हैं, चाहे पिता ने दोबारा शादी की हो या नहीं।