
Maa Movie Review: पिछले कुछ समय से बॉलीवुड में हॉरर फिल्मों का दौर चल रहा है। सिनेमाघरों से लेकर ओटीटी पर एक के बाद एक कई हॉरर फिल्में रिलीज हो रही है। हाल ही में बॉलीवुड एक्ट्रेस काजोल की नई माइथोलॉजिकल हॉरर फिल्म ‘मां’ सिनेमाघरों में रिलीज हो गई है। फैंस काफी समय से फिल्म के रिलीज होने का इंतजार कर रहे थे। काजोल की फिल्म ‘मां’ एक पौराणिक हॉरर कहानी पर बेस्ड है, जिसमें देवी और राक्षसों की प्राचीन मान्यताओं को दिखाया गया है। इस हॉरर फिल्म को विशाल फुरिया ने डायरेक्ट किया है।
मां फिल्म की कहानी चंद्रपुर नाम की जगह से शुरू होती है, जहां एक परंपरा के अनुसार राजपरिवार की बेटियों की बलि दी जाती है ताकि देवी काली की कृपा से राक्षसी ताकतों से सुरक्षा मिल सके। आइए जानते हैं कैसी है फिल्म की कहानी
कैसी है फिल्म की कहानी
। इसके बाद कहानी करीब 40 साल आगे बढ़ती है। फिल्म की कहानी आगे बढ़ती है तो दिखाता है कि अंबिका (काजोल) और उनके पति शुवांकर (इंद्रनील सेनगुप्ता) चंद्रपुर से दूर शांति से अपनी जिंदगी बिता रहे होते हैं। शुवांकर एक शाही परिवार से है। वह अपनी बेटी को बचाने के लिए इस बात को अपने परिवार से छुपा लेता है, ताकि बेटी की बलि न दी जाए। लेकिन हालात तब बिगड़ जाते हैं जब शुवांकर अपने पिता की मौत के बाद चंद्रपुर जाता है और वहीं उसकी अचानक मौत हो जाती है।
क्या होता है जब चंद्रपुर जाती हैं अंबिका?
इसके बाद अंबिका (काजोल) और उनकी बेटी किसी वजह से चंद्रपुर जाते हैं। वहां उन्हें कई परेशानियों का सामना करना पड़ता है। करीब 12 साल तक अंबिका (काजोल) और उनके पति शुवांकर ने अपनी बेटी श्वेता (खेरिन शर्मा) को चंद्रपुर से दूर रखा। लेकिन शुवांकर की मौत के बाद अंबिका को मजबूरी में चंद्रपुर लौटना पड़ता है। इस बार उनकी बेटी भी साथ होती है, जो अपने पिता का भव्य महल को देखने की जिद करती है, जो अब बिकने के लिए तैयार है। अंबिका चंद्रपुर की डरावनी कहानियों को पहले से जानती थी, लेकिन जब वह बेटी के साथ महल पहुंचती है और अजीब घटनाएं शुरू होती हैं, तो वह हैरान रह जाती है। अब एक मां के रूप में वह इन हालातों से बेटी को कैसे बचाती है, यही फिल्म की असली कहानी है।
कैसी है काजोल की एक्टिंग
काजोल ने इस फिल्म में अंबिका के रोल में दमदार एक्टिंग की है। वह अपने इस रोल में कमाल की लगी है। मां के तौर पर काजोल ने जब अपने इमोशन्स दिखाती है तो वो दर्शकों का दिल छू जाती हैं। काजोल ने अपने दमदार एक्टिंग से पूरी फिल्म को संभाल लिया है। वहीं बाकि के कलाकारों की बात करें तो फिल्म में रोनित रॉय और बाकी कलाकारों का एक्टिंग ठीक-ठाक रहा है।
साधारण हैं वीएफएक्स
फिल्म की सबसे बड़ी कमी इसकी कमजोर स्क्रिप्ट और साधारण वीएफएक्स हैं, जो कहानी को दमदार बनाने में नाकाम रहे है। बंगाली संस्कृति को दिखाने की कोशिश तो की गई, लेकिन कई हिस्सों में यह बनावटी और पुराने खांचे में फंसी हुई लगती है। कुछ दृश्य डर जरूर पैदा करते हैं, लेकिन फिल्म को यादगार बनाने के लिए वो काफी नहीं हैं। फिल्म की कहानी और सोच अच्छी है, लेकिन उसे दिखाने का तरीका उतना असरदार नहीं लगता।
कुल मिलाकर आप एक बार इस फिल्म को देख सकते हैं। इस फिल्म में अजय देवगन और आर. माधवन की 2024 की फिल्म ‘शैतान’ जैसी गहराई और पकड़ इस फिल्म में नहीं दिखती।